आह्लïदिनी अनुभाव से उनका प्रेमानन्द मिलता है
बहुत गहराई में आप लोग क्या करेंगे जाकर? अच्छा नौ वाक्य में समझ लीजिए कुल नौ वाक्य बोलेंगे- सावधान होकर सुनिये।
1. श्रीकृष्ण की चित् शक्ति के संधिनी अंश से श्रीकृष्ण का नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि कार्य होते हैं।
2. श्रीकृष्ण की चित् शक्ति के संवित् अनुभाव से श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य, माधुर्य, सौन्दर्यादि का अनुभव होता है।
3. चित् शक्ति के आह्लïादिनी अनुभाव से श्रीकृष्ण का प्रेमानन्द प्राप्त होता है।
4. जीव शक्ति की संधिनी शक्ति के अनुभाव से जीव की नित्य चेतन सत्ता एवं नाम रूपादि का कार्य होता है।
5. जीव शक्ति के संवित् अनुभाव से जीव शक्ति को ब्रह्मï का ज्ञान होता है।
6. जीव के उसी चित् शक्ति के अंश स्वरूप जीव के आह्लïादिनी अंश के अनुभाव से जीव को मोक्ष या ब्रह्मïानन्द आदि प्राप्त होता है।
7. तीसरी शक्ति अर्थात् माया के संधिनी अनुभाव से इन्द्रिय, मन, बुद्धि और इस शरीर के नमादि का कार्य होता है।
8. इस माया शक्ति के संवित् अनुभाव से चिन्ता, शोक, आशादि की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
9. माया शक्ति के ह्लïादिनी अनुभाव से स्त्री, पति, बाप, बेटे रसगुल्ले का सुख अथवा स्वर्ग के सुख का अनुभव होता है।
ये नौ चीजें कुल हैं। तो आपको और तो मतलब है नहीं छ: चीजों से। आपको तीन से मतलब है। यानी आपके जो प्रेमास्पद हैं उनकी चित् शक्ति के श्रीकृष्ण के उस संधिनी अनुभाव से जो उनके नाम, रूप, लीला, गुण, धामादि का विकास होता है और उनके संविद् शक्ति के अनुभव से जो उनके ऐश्वर्य, माधुर्य, सौंदर्य आदि का अनुभव होता है और उनके आह्लïादिनी अनुभाव से उनका प्रेमानन्द मिलता है। बस इतने से आपका मतलब होता है।