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रैलियों में उमड़ी भीड़ जीत या हार तय नहीं करती : रीता बहुगुणा जोशी

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नई दिल्ली | कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाली रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट से प्रत्याशी हैं। वह महिला आरक्षण की हिमायती हैं और लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में बड़े कदम उठाना चाहती हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने को लेकर आश्वस्त प्रोफेसर रीता कहती हैं कि रैलियों में उमड़ी भीड़ किसी की हार या जीत तय नहीं करती।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन पर रीता ने कहा, “गठबंधन हर पार्टी का अधिकार है। आप चुनावी दंगल जीतने के लिए किसी के लिए भी गठबंधन करने के लिए स्वतंत्र हैं और उसके अनुरूप चुनाव अभियान की रणनीतियां भी बना सकते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में विकास एक मुद्दा था, जिसके दम पर प्रदेश की जनता ने भाजपा को सर्वाधिक मतों से जितवाया, जबकि बसपा और सपा सरकारों के कार्यकालों का नकारात्मक प्रभाव रहा है।”
रीता ने कहा, “लोग भ्रष्टाचार, लचर कानून व्यवस्था से नाराज हैं। युवा बेरोजगार हैं, बुनियादी ढांचा लचर है, सिर्फ दो-चार सड़कें बना देने या मेट्रो चला देने से विकास नहीं हो जाता। विकास का मतलब लोगों को रोजगार देना और बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। मैं इसी सोच के साथ भाजपा से जुड़ी हूं।”
लखनऊ कैंट से रीता बहुगुणा जोशी का मुकाबला मुलायम यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव से हो रहा है, लेकिन रीता अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आती हैं। वह रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ पर भी निशाना साधते हुए कहती हैं, “रैलियों में उमड़ी भीड़ जीत या हार तय नहीं करती। जरूरी नहीं कि रैलियों में किसी प्रत्याशी की रैलियों में उमड़ी भीड़ वोट भी दे।” वह आगे कहती हैं, “मेरे परिवार ने 27 चुनाव लड़े हैं। मेरा अनुभव बताता है कि रैलियों में उमड़ी भीड़ जीत तय नहीं करती। 1976 में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की चुनावी रैलियों में जनता का सैलाब उमड़ता था लेकिन नतीजा क्या हुआ? रैलियों में फिल्मी सितारों को देखने के लिए भी भीड़ उमड़ती है लेकिन वोट कहीं और चले जाते हैं। उत्तर प्रदेश में 2012 में राहुल गांधी की रैलियों में भी जबरदस्त भीड़ थी लेकिन कांग्रेस का जादू नहीं चला।”
सपा के हालिया घोषित घोषणापत्र के सवाल पर रीता कहती हैं, “लोग सपा के पारिवारिक ड्रामे से तंग आ चुके हैं। सपा के घोषणापत्र का वोट बैंक पर कुछ असर नहीं पड़ने वाला। इन्होंने पिछली बार भी इस तरह का लोक लुभावन घोषणापत्र जारी किया था, कितने वादे पूरे हुए? छात्रों को टैबलेट देने की बात की गई लेकिन फिर कहा गया कि इसके लिए एक टेस्ट पास करना पड़ेगा। उसके बाद भी 90 फीसदी छात्रों को कुछ नहीं मिला। महिलाओं की सुरक्षा के लिए 1090 हेल्पलाइन शुरू की गई, लेकिन उसका कुछ अता-पता नहीं है।”
प्रोफेसर रीता ने कहा, “पुलिस थाने अत्याचार के सेंटर बन गए हैं। महिलाएं न सुरक्षित हैं और न ही प्रदेश में रोजगार है। आप महिलाओं को भीख में प्रेशर कुकर दे रहे हैं। यदि मदद करनी ही है तो सरकारी सेवाओं में उनके लिए स्थान आरिक्षत क्यों नहीं करते। तमिलनाडु, हरियाणा, बिहार, केरल, कर्नाटक में शिक्षा एवं पुलिस क्षेत्र में महिलाओं के लिए आरक्षण है, लेकिन उत्तर प्रदेश में तीन फीसदी महिलाएं भी सरकारी सेवाओं में नहीं हैं।” वह कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहती हैं कि कांग्रेस कुछ नहीं कर पाएगी, इसलिए उसने सपा से हाथ मिला लिया है।
उन्होंने महिला आरक्षण के सवाल के जवाब में कहा, “मैं महिला आरक्षण के पक्ष में हूं। जब तक विधानमंडल में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा, तब तक महिलाओं की संख्या विधानसभा और लोकसभा में नहीं बढ़ेगी। भारतीय लोकतंत्र में जातिवाद, क्षेत्रवाद का बहुत असर है। यूपी और बिहार जैसी जगहों में तो बाहुबल का भी बहुत इस्तेमाल होता है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को समान अधिकार देने की जरूरत है और मैं इस दिशा में कुछ ठोस करना चाहती हूं।”

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