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बंगाली युवती ने टूटी जिंदगी को दिया काव्यमय अर्थ

कोलकाता , 17 दिसम्बर (आईएएनएस)| आठ साल पहले तक सती मंडल सामान्य व खुश रहनेवाली बालिका थी। वह खेलों में कुछ बेहतर करने के सपने बुन रही थी। लेकिन चिकित्सा में बरती गई एक लापरवाही ने उसके सपनों पर पानी फेर दिया। सती अब ठोस भोजन नहीं खा पा रही है।

यही नहीं, वह मुंह से पानी भी पीने में असमर्थ है। घर से अस्पताल का चक्कर लगाना उसके लिए अत्यंत पीड़ादायक अनुभव है। लेकिन उसने अपनी पीड़ा को सहने का नया जरिया ढूंढ़ लिया है। वह अब ज्यादा समय काव्य रचना में तल्लीन रहती है, जिससे उसकी जिजीविषा बढ़ गई है।

पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के एक अत्यंत निर्धन परिवार में पैदा हुई सती असह्य शारीरिक कष्ट के बावजूद अध्ययन करती रहती है। खेल के क्षेत्र में कॅरियर की उम्मीद धूमिल होने पर अपनी जिंदगी को नया आयाम देते हुए वह काव्य की ओर उन्मुख हुई है।

23 साल की बंगाली युवती ने 500 से ज्यादा कविताओं की रचना बंगाली भाषा में की है। इनकी सौ से ज्यादा कविताएं छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। निंदा और तारीफ के बीच सती को अब पूरे पश्चिम बंगाल से साहित्यिक सम्मेलनों के लिए आमंत्रण आने लगे हैं। प्रदेश के मशहूर कवियों के बीच उसके किस्से सुनने को मिलते हैं।

अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी सती ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, जब मैं काव्य रचना करती हूं या अपनी प्रकाशित कविताएं देखती हूं तो मैं अपनी सारी तकलीफें भूल जाती हूं। मुझे लगता है कि मैं सौ साल तक जीवित रहूंगी।

उसकी आखों में उम्मीद की चमक है, चेहरे पर तेज है। उससे बात करके उसके आंतरिक शक्ति का पता चलता है कि विषम परिस्थितियों में भी उसका उत्साह कम नहीं हुआ है।

सती की तकलीफें 2009 में आरंभ हुईं, जब उसकी आंत में संक्रमण हुआ था।

कोलकाता से 55 किलोमीटर दूर नादिया जिला स्थित घोशपारा की रहनेवाली सती ने बताया, एक गलत जांच के कारण मेरा आहार नाल फट गया। मुझे छह महीने अस्पताल में रहना पड़ा और उसके बाद तीन महीने तक घर में स्वास्थ्य लाभ करती रही। मैं मुंह से कुछ भी नहीं खा-पी सकती थी।

खाने-पीने के लिए डॉक्टरों ने उसके पेट में रायल्स ट्यूब लगा दिया है और वह उसी के माध्यम से कुछ खाद्य-पदार्थ ग्रहण कर पा रही है।

सती ने बताया कि वह आहार में तरल पदार्थ पर ही जीवित है। पेट में कई साल से रायल ट्यूब लगे होने से उसे लगातार तकलीफें रहती हैं और कभी-कभी उसकी पीड़ा असहयनीय हो जाती है। अक्टूबर में ही उसको ट्यूब बदलवाने के लिए चार बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े थे।

सती ने कहा, मैं अपनी पीड़ा को सहने के लिए कविता लिख रही हूं। मेरे जीवन में अब कविता के सिवा और कुछ नहीं रह गया है। कभी-कभी मुझे लगता है कि जिंदगी दूभर होती है और इसी के साथ मेरी कविताएं शुरू होती हैं। मेरी कविताएं ही हैं, जिनसे मुझे जिंदगी की जंग लड़ने की प्रेरणा मिलती है।

सती के पिता रिक्शा चलाते थे। डेढ़ साल पहले उनका निधन हो गया।

सती नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर को अपना आदर्श मानती है। अग्रणी बंगाली कवि नरेंद्रनाथ चक्रवर्ती और अरण्यक बसु भी उसके प्रिय कवि हैं। वह खुद को अरण्यक बसु की ऋणी मानती है।

सती ने बताया, उनको मेरी प्रतिभा की परख थी। अगर वह नहीं होते तो अब तक मुझे जो पहचान मिली है, वह कभी नहीं मिलती। वह मुझे अपनी बेटी मानते हैं। हर महीने वह मेरे घर आते हैं और एक हजार रुपये मेरे गुजारे के लिए मुझे देते हैं।

सती की कविताएं ‘कोलार्ज’, ‘खोला हौआ’, ‘उदास’, ‘लिखा दिए रेखापट’, ‘छायामन’ और ‘कृष्णचूड़ा’ जैसी कई बंगाली पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। कोलकाता और अन्य जिलों में 25 से ज्यादा साहित्यिक सम्मेलनों में उसे काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया जा चुका है।

लेकिन अकादमी व ज्ञानपीठ से सम्मानित कवि शंखा घोष के कोलकाता स्थित निवास पर हाल ही में रविवार सुबह साहित्यक चर्चा में हिस्सा लेना सती के लिए सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाला क्षण रहा।

सती ने बताया, वहां मुझे श्रीजातो जैसे अनेक महान कवियों से मिलने का मौका मिला। उन्होंने पूरी तन्मयता से मेरी कविताएं सुनीं। उन्होंने मुझे उनकी साहित्यिक बैठकों में नियमित रूप से हिस्सा लेने को कहा। स्वास्थ्य साथ दे तो मैं निश्चित रूप से हिस्सा लूंगी।

सती की कविताओं में जीवन के विविध रंग व बिंब मिलते हैं, जिनसे भावुकता प्रकट होती है। वह कहती है कि मेरे स्वास्थ्य के कारण हो सकता है कि उनकी कुछ कविताओं में निराशावाद का भाव प्रकट होता है।

कल्याणी महाविद्यालय से स्नातक दूसरे वर्ष की परीक्षा पास कर चुकी सती अर्थाभाव के कारण तीसरे वर्ष की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाई और वह अब तक स्नातक की उपाधि नहीं हासिल कर पाई है।

सती की मां माया घर-घर घूमकर साड़ी बेचती है, जिससे उनके परिवार का गुजारा होता है। वह बेटी के इलाज का भारी खर्च नहीं उठा पा रही हैं। माया ने कहा, बेटी की बीमारी के कारण मैं उसे अकेले घर में छोड़कर बाहर नहीं जा सकती, जिससे मेरा व्यवसाय भी प्रभावित होता है।

इस बीच दो सरकारी अस्पताल, एसएसकेएम और कोलकाता मेडिकल कॉलेज की ओर से कहा गया है कि सर्जरी करने से सती ठीक हो सकती है और वह पहले की तरह मुंह से भोजन व पानी ले सकती है, जिसके बाद उसे उम्मीद की नई किरण दिखाई देने लगी है और वह खुश है। वह अपने जीवन के अनुभवों पर एक उपन्यास लिखना चाहती है।

(यह साप्ताहिक फीचर श्रृंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सहभागिता से संचालित एक सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

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