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‘नवग्रह कुआं’ बना आस्था का केंद्र 

हाजीपुर। आपने वैसे तो कई कुओं की पूजा होती देखी होगी, लेकिन बिहार के वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर में एक ऐसा कुआं भी है, जहां लोग नौ ग्रहों के प्रभाव से शांति के लिए पूजा करने आते हैं। मान्यता है कि इस कुआं में मात्र स्नान करने और इसका जलग्रहण करने से ही सभी ग्रहों के दोष दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि इस कुएं को लोग ‘नवग्रह कुएं’ के नाम से जानते हैं। हाजीपुर के ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल गंगा-गंडक के संगम पर स्थित कबीर मठ में स्थित कुएं के पास प्रतिदिन सैकड़ों लोग नौ ग्रहों से मुक्ति के लिए आते हैं।
कबीर मठ के महंत अर्जुन दास ने बताया कि इस कुएं के निर्माण की सही जानकारी किसी को नहीं है, परंतु कुएं के मुंह पर शिलापट पर अंकित तिथि के मुताबिक, इस कुएं का निर्माण वर्ष 1640 में करवाया गया था। वे बताते हैं, “इस कुएं के मुहाने पर नौ मुख हैं और सभी मुख से निकलने वाले पानी का स्वाद अलग-अलग है।” महंत का कहना है कि हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, ग्रहों के प्रभाव के कारण ही जीवन में उतार-चढ़ाव आता है। इस कारण प्रतिदिन लोग नौ ग्रहों की शांति के लिए यहां कुएं का जलग्रहण करने और इसकी पूजा करने आते हैं।
उन्होंने बताया, “कुएं के नौ अलग-अलग मुहाने से जल भरने पर जल का अलग-अलग स्वाद रहता है, जिसे आप पीकर महसूस भी कर सकते हैं। इस कुएं का जलस्तर नदी के जलस्तर से पांच से 10 फीट हमेशा ऊपर रहता है, जबकि कुआं और नदी की दूरी करीब 100 फीट से भी कम है।” स्थानीय लोग भी इस कुएं को किसी मंदिर से कम नहीं मानते। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कुआं भी भगवान की तरह लोगों को शांति देने वाला है।


स्थानीय ग्रामीण राजीव कुमार बताते हैं कि वर्ष 1640 में निर्मित इस कुएं से लोगों को इतना फायदा हुआ है कि लोग इस कुएं की सेवा में लगे रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कुएं की बनावट इस तरह की है कि 377 साल पूर्व बनाए गए इस कुएं को आज तक किसी प्राकृतिक आपदा से क्षति नहीं पहुंची है।
गंडक नदी पर शोध कर रहे और शिक्षाविद् हाजीपुर निवासी प्रोफेसर श्याम नारायण चौधरी  से कहते हैं कि इस कुएं को देखने के लिए देश और विदेश के रहने वाले लोग आते हैं। उन्होंने बताया कि यहां प्रतिवर्ष लगने वाला विश्वप्रसिद्ध सोनपुर मेले के दौरान यहां लोगों की भीड़ लगी रहती है।  उन्होंने बताया, “देश-विदेश के कई शोधकर्ता भी यहां पानी का रहस्य जानने पहुंचे हैं। उनकी जांच से भी पता चला है कि सभी मुख के लिए गए जल में अलग-अलग मिनरल हैं, जिस कारण स्वाद अलग होता है।”
वैसे चौधरी यह भी कहते हैं कि अभी भी इस कुएं का जल का स्वाद अलग-अलग होना रहस्य बना हुआ है, लेकिन लोगों के लिए यह कुआं आज आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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