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शिव के खप्पर से निकली थी शिप्रा नदी, इन रोगों का करती है नाश

उज्जैन। मोक्षदायिनी मां शिप्रा का तट 24 संगम तीर्थ की मान्यता लिए हुए है। इस तट पर सोमेश्वर कुंड का भी विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार शिप्रा नदी सहित संगम तीर्थों का शिप्रा के तट पर अलग-अलग महत्व है। शिप्रा का जीरो रेखांश से संबंधित होना, उसका उत्तर वाहिनी होना विश्वभर की नदियों में विशेष महत्व रखता है।

शिप्रा की अमृत संभवा, ज्वरघ्नी, कनक शृंगा, पापघ्नी आदि नामों से स्तुति की जाती है। पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि धर्मशास्त्र के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा विशेष महत्व रखती है। इस पर्व काल पर देव, ऋषि, पित्तरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, आरती, धनदान और दीपदान करने का विशेष महत्व है।

पर्वकाल पर मां शिप्रा के तट पर समस्त दान व आरती कर संपूर्ण पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं। मां शिप्रा की आरती एक प्राचीन परंपरा है, जो कल्पयुग सृष्टि से चली आ रही है।

शिप्रा का पौराणिक महत्व

मां ज्वरघ्नी शिप्रा नदी के समान अन्य नदी अमृत के तुल्य नहीं मानी गई है। चूंकि शिप्रा में स्नान करने से समस्त ज्वर व रोगों का नाश होता है, इसलिए शिप्रा को ज्वरघ्नी भी कहा जाता है। मान्यता है कि शिप्रा भगवान शिव के खप्पर से निकली थी।

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