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‘छात्रों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति चिंता का विषय’

अभी हाल में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 के दौरान पूरे देश में 130000 लोगों ने आत्महत्या की है। वैसे तो सभी प्रकार के लोग शामिल है किन्तु इसमें 10159 आत्महत्या सिर्फ छात्रों द्वारा की गई है। छात्रों द्वारा किए गए आत्महत्या की संख्या का यदि और विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होगा कि वर्ष 2018 के दौरान प्रत्येक 24 घंटे के अंदर 28 औसतन छात्रों ने आत्महत्या की है। यदि 1 जनवरी 2009 से 31 दिसंबर 2018 के बीच कुल 81758 छात्रों द्वारा किए गए आत्महत्या पर नजर डाली जाए, तो ज्ञात होगा कि इसमें से आधी से भी अधिक संख्या अर्थात 57 प्रतिशत छात्रों ने पिछले 5 वर्षों के दौरान आत्महत्या की है, जिसमें कि अकेले वर्ष 2018 के दौरान सर्वाधिक छात्रों ने आत्महत्या की है। अर्थात यह संख्या हर वर्ष लगातार बढ़ रही है।

उपरोक्त तथ्य किसी भी समाज के लिए बहुत ही दुःखद है और यह परेशान करने वाली स्थिति हैं। छात्रों के द्वारा आत्महत्या की यह तस्वीर हमारे शैक्षणिक जगत के वर्तमान परिवेश की भी एक झलक प्रस्तुत करता है, जिससे गुजरने के दौरान अथवा उसके बाद छात्रों के व्यक्तित्व में वह सभी बातें नहीं शामिल हो पा रही हैं, जिन्हें प्राप्त करके वे जीवन की सभी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम हो सके।

यहां पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आत्महत्या करना व्यक्ति के मानसिक स्तर पर तनाव की वह अंतिम परिणति है, जो कि स्पष्ट रूप से दिखती है। इसके बारे में एक छोटा सा समाचार भले ही प्रकाशित हो जाता हो, किंतु इसके पूर्व की वे सभी नकारात्मक स्थितियां जिसमें से गुजरते हुए देश के बहुत बड़ी संख्या में छात्र जीवन जी रहे हैं, उसके बारे में कोई तथ्य जनमाध्यमों में अथवा अन्यत्र सामने आते भी नहीं है। यह सत्य यही है कि एक बहुत बड़ी संख्या ऐसे भी छात्रों की है, जो कि विभिन्न प्रकार की मानसिक तनावों से गुजरते हुए जीवन जी रहे हैं। स्पष्ट है कि छात्रों के समक्ष घरेलू परिवेश से लेकर के शैक्षिक संस्थानों तक की स्थितियां किसी न किसी रूप में प्रतिकूल होती हैं और जिसके निवारण के संदर्भ में उन्हें किसी प्रकार का ऐसा कोई भी मंच नहीं प्राप्त होता है, जहां पर कि वे उनका निदान ढूंढ सकें।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि देश के उन शैक्षणिक संस्थानों में भी छात्रों द्वारा आत्महत्या की जा रही है, जिसे कि देश का सबसे उत्कृष्ट संस्थान माना जाता है। इसमें आईआईटी, आई.आई.एम एवं इस प्रकार के अन्य प्रसिद्ध संस्थान शामिल हैं। विभिन्न प्रकार की परीक्षा में असफलताछात्रों द्वारा आत्महत्या करने के एक मुख्यकारण पाया गया है। किंतु इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक कारण हैं जो कि छात्र को आत्महत्या करने के लिए विवश करते हैं अथवा वह इसके लिए मजबूर होते हैं। कानपुर, आईआईटी जैसे संस्थान में जब कोई छात्र आत्महत्या करता है तो फिर एक आशंका यह अवश्य होती है कि इन संस्थाओं में भी कोई न कोई कमी है। आत्महत्या करने के अन्य कारणों में छात्रों में बेरोजगारी, सही ढंग से कैरियर का चुनाव न हो पाना, हासिल किए गए नौकरी से संतुष्ट न होना और अनेक प्रकार के तमाम वे कारण हैं जो कि घर, समाज के बदलते सांस्कृतिक एवं अन्य तौर तरीके की देन कहे जा सकते हैं।

इतनी बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा किए जाने वाले आत्महत्या की इस रिपोर्ट के संदर्भ में अधिकतर समाचारपत्र एवं अन्य माध्यमों में कोई खास चर्चा भी नही हो पाती है और दिन रात बहुत ही छोटी-छोटी बातों को लेकर चिल्लाने और बहस करने वाले टीवी चैनल भी इतने गंभीर विषय पर एक बार भी बात करने की कोई जरूरत नहीं समझते है। इसी प्रकार से विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों एवं अन्य मंचों पर भी इसकी कोई गंभीर चर्चा नहीं हो पा रही है। यह सब इस बात का परिचायक है कि छात्रों का तनाव और आत्महत्या करने की घटना के प्रति सामाजिक जागरूकता और सजगता कितनी कम है।

छात्रों द्वारा किए जाने वाले आत्महत्या के स्पष्ट कारणों को समझने और फिर उस उसे रोकने की प्रयास के लिए सिर्फ सरकार पर हर प्रकार से निर्भर रहना किसी भी तरीके से पर्याप्त नहीं हो सकता है, क्योंकि छात्रों के आत्महत्या के विभिन्न प्रकार के ऐसे कारण हैं, जो कि इस सन्दर्भ में समाज के सभी जिम्मेदार इकाइयों द्वारा आवश्यक कदम उठाए बगैर रोकना संभव ही नहीं है। इसमें सरकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, किंतु सरकार ही सब कुछ करेगी, ऐसा विचार रखना सही नहीं है। यह एक ऐसी समस्या है जिसकेसमाधान के लिए सभी लोगों के एकजुट प्रयास की आवश्यकता है।
देश के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों एवं अन्य इस प्रकार के जगहों पर सफलता प्राप्त करने के तौर तरीके और उपाय बताए जाते हैं और इसी के साथ सफल व्यक्तियों के पुरस्कृत करने से लेकर के अन्य तरीके से स्वागत किया जाता है। किंतु जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यदि हम असफल हो रहे हैं, तो उसका सफलतापूर्वक सामना कैसे किया जाए, इसके बारे में किसी प्रकार की कोई शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्य विशद् स्तर पर नहीं किया जाता है और न हीं इस संदर्भ में किसी प्रकार की कोई ऐसा सार्वजनिक स्तर पर व्यावहारिक मंच उपलब्ध है, जहां पर कि छात्र अपनी कठिनाइयों को बिना किसी संकोच के पूछ जांच कर उसका समाधान प्राप्त कर सके।

हमारे समाज में सफलता को एक बहुतही नकारात्मक दृष्टि से देखा जाने की प्रवृत्तिरही है । इसी प्रकार से असफल व्यक्तियों के प्रति लोगों का बहुत ही स्वस्थ नजरिया नहींहोता है । भले ही वे कितना भी ईमानदारी सेक्यों न अपने उद्देश्य के लिए प्रयास किए हो ।होना यह चाहिए कि कोई भी व्यक्ति यदिकिसी प्रकार का कोई प्रयास कर रहा है तोउस प्रयास की सराहना की जानी चाहिएऔर यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कियदि वह कहीं पर असफल हो रहा है तो उसेअपने जीवन के एक अभिन्न भाग के रूप मेंस्वीकार करे और संघर्ष करने की मनोवृतिपैदा करें।

हमारे देश में विश्वविद्यालयों में सैकड़ों विषयों में शिक्षा एवं शोध कार्य किया जाता है। किंतु व्यावहारिक जीवन से जुड़े बहुत ही आधारभूत बातों के संदर्भ में किसी प्रकार की कोई ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती है, जिसे कि वे जीवन की चुनौतयों के दौरान उपयोग कर सके। कहीं-कहीं पर व्यक्तित्व विकास के नाम पर संदर्भ में शॉर्ट टर्म कोर्स चलाए जाते हैं किंतु जीवन संघर्ष और असफलता की स्थिति का सामना करने के लिए व्यक्ति को पूरी तरह से अकेला छोड़ दिया जाता है। कोई व्यक्ति जिस किसी भी क्षेत्र में अपना कार्य कर रहा हो, वह समय-समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करता है और अपने निजी जीवन में भी विभिन्न परिस्थितियों के कारण से वह समस्याओं से जूझता रहता है, इससे निपटने के लिए उसको कहीं पर भी बहुत औपचारिक शिक्षा नहीं दी गई रहती है, जिसकी मदद से वह सफलतापूर्वक इन स्थितियों से स्वयं को उबार ले और इसका परिणाम यह होता है कि अपने समझ के अनुसार वह इन सभी से निपटने की कोशिश करता है। किंतु यह आवश्यक नहीं है कि सभी लोग इसका सफलतापूर्वक सामना कर ही ले। अतः हताश एवं निराश होकर के वह फिर आत्महत्या का ही शरण लेता है।

विभिन्न प्रकार की समस्याओं के सामना करने और सफल जीवन संदर्भ में विभिन्न प्रकार की ऐसी व्यावहारिक बातें हैं, जिनके बारे में हमारे छात्रों को बचपन से ही शिक्षित करने की आवश्यकता है। उच्चशिक्षा के पाठ्यक्रमों में विविध विषयों की सैद्धान्तिक बातें तो खूब बतायी जाती है, किन्तु जीवन जीने की कला के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी नहीं दी जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि घिसे पीटे अंदाज की शिक्षा ले करके छात्र जब व्यावहारिक स्तर पर सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है, तो उसका जिन वास्तविकताओं से सामना होता है, वे कई बार दिखने में बहुत ही सहज और सरल होते हुए भी एक छात्र के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण होते हैं और वह उसका सामना नहीं कर पाता है। परिणामस्वरूप् आत्महत्या ही उनके लिए एक आसान रास्ता दिखता है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की लगातार बढ़ती संख्या हमारी समाज की स्थिति का बहुत बड़ा संकेत है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कहीं न कहीं अपूर्ण एवं दोषपूर्ण है और इसमें बदलाव और सुधार की आवश्यकता है। यह बदलाव व्यवहार, शैक्षिक परिवेश से लेकर के पाठ्यक्रम तक में दिखनी चाहिए। आज आवश्यकता इस बात की है कि कम से कम शिक्षा के सभी स्तरों पर आरंभ से ही और खास करके उच्चशिक्षा स्तर पर ऐसे पाठ्यक्रम तैयार किए जाएं, जिसमें छात्रों को सफल जीवन जीने और जीवन में आने वाले विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और असफलताओं का सामना करने के तौर-तरीकों के बारे में बहुत ही व्यावहारिक ढंग से सभी प्रकार की बातों को सीख मिल सकें। यदि इस प्रकार का कोई सार्थक प्रयास किये जाते है तो फिर छात्रों द्वारा आत्महत्या करनें की घटनाएं अवश्य ही कम होगी।

 – डॉ. अरविन्द कुमार सिंह ( असिस्टैंट प्रोफेसर, बीबीए विश्वविद्यालय, लखनऊ )

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