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भारत-पाक युद्ध में जांबाज़ों की तरह लड़ने वाले ले.कर्नल इंद्र सिंह रावत नहीं रहे

पूर्व सैनिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे कर्नल रावत

भारत-पाकिस्तान के साथ वर्ष 1947-48  में हुए युद्ध में वीरता से लड़ने वाले उत्तराखंड के बहादुर जवान कीर्ति चक्र विजेता रिटायर्ड ले.कर्नल इंद्र सिंह रावत ने अपनी आखिरी सांस ली।

उनके निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनकी आत्मा की शान्ति और दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से कामना की।

कीर्ति चक्र विजेता रिटायर्ड ले.कर्नल इंद्र सिंह – एक परिचय

ले. कर्नल रावत का जन्म 30 जनवरी 1915 को पौड़ी गढ़वाल के बगेली गांव (राठ क्षेत्र) के एक किसान परिवार में हुआ था। वर्ष 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में वो जांबाज़ों की तरह लड़ें।

वर्ष 1953 में डेपुटेशन के तौर पर असम राइफल्स में चले गए। नागालैंड में नागा विद्रोह को काबू करने के लिए उन्हें अशोक चक्र-दो (कीर्ति चक्र) मिला।इसके बाद वह गढ़वाल राइफल्स की चौथी व पांचवीं बटालियन में भी तैनात रहे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद गठित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) की पहली बटालियन का दारोमदार भी कर्नल रावत को सौंपा गया।

गढ़वाल राइफल्स, असम राइफल्स व आइटीबीपी में 37 साल की सैन्य सेवा के बाद कर्नल रावत वर्ष 1970 में रिटायर हुए। रिटायर होने के बाद भी वो पूर्व सैनिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे।

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