राष्ट्रीय

सर्वोच्च न्यायालय ने नाबालिग मां को मुआवजे पर चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा 

नई दिल्ली| सर्वोच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के बाद लड़की को जन्म देने वाली 10 वर्षीय बच्ची को मुआवजा देने की मांग संबंधी एक याचिका पर शुक्रवार को चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा। पीड़िता ने गुरुवार को एक लड़की को जन्म दिया था।

न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की याचिका पर चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा। जयसिंह ने पीड़िता के लिए 10 लाख रुपये का मुआवजा तय किए जाने की मांग की है।

नोटिस चंडीगढ़ लीगल सर्विसेज अथॉरिटी व नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नालसा) को भी जारी किया गया है।

गर्भधारण की त्रासदी को इंगित करते हुए जिससे दस वर्ष की बच्ची गुजरी, जयसिंह ने कहा, “बच्ची की कोख बच्चे का बोझ तक वहन नहीं कर सकती।”

उन्होंने अदालत से चिकित्सकों का ‘कुछ मार्गदर्शन’ करने का आग्रह किया, जिससे इस तरह के गर्भधारण के मामले से निपटा जा सके। उन्होंने कहा, “चिकित्सक कानून के डर की वजह से वह कार्य नहीं करते जिसे उन्हें करना चाहिए।” उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को इस तरह के मामलों में अनिवार्य रूप से उपचार देना चाहिए।

इंदिरा जयसिंह ने चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा पीड़िता के माता-पिता को 10,000 रुपये की मामूली रकम दिए जाने पर भी नाराजगी जताई।

उन्होंने पीठ से कहा कि पीड़िता की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 10 लाख रुपये में से तीन लाख रुपये उसे तत्काल दिए जाने चाहिए।

उन्होंने पीठ से कहा कि शेष सात लाख रुपये ऐसे खाते में जमा किया जाना चाहिए, जिसका इस्तेमाल पीड़िता के पिता उसके कल्याण के लिए कर सकें।

उन्होंने अदालत से यह भी आग्रह किया कि माता-पिता और नाबालिग मां का नाम सभी प्रकाशनों में रोक दिया जाए और इस मामले में मुकदमे की कोई रिपोर्टिग नहीं हो। मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी।

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