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आजादी के 70 सालो के 7 बड़े आंदोलन जिन्होंने लिखी क्रान्ति की इबारत

आज भारत को आजाद हुए 70 साल बीत चुके है इन 70 सालों में देश ने बहुत से उतार-चढ़ाव का सामना किया है। देश ने कई युद्ध लड़े, कई दर्द भी सहे फिर भी इसकी एकता, सम्प्रभुता को कोई विखंडित न कर सका। ऐसा इसीलिए क्यूंकि इन 70 सालों में देश ने ऐसे वीर जवानो, महापुरुषों और क्रांतिकारियों को जन्म दिया, जो आगे चलकर देश के लिए एक मिसाल बनें।

देश आज आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहा है। अंग्रेजों के खिलाफ चले आजादी के संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था। इन 70 सालों का सफर उतना आसान न था जितना हमें सुनने में लगता है बल्कि इन 70 सालों का सफर शान्ति सन्देश, युद्ध, जोखिमों  जैसे कठिन संघर्षों से भी भरा रहा।

देश ने अबतक जिन पड़ावों को पार किया है और कर रहा है आइये उन हिस्सों के किस्सों पर एक नज़र डालते है-

इन 7 अहम आंदोलनों से देश को मिली नई राह-

कहते है ‘अगर इरादा मजबूत हो, तो आप बड़ी से बड़ी जंग को भी जीत लेने की काबिलियत रखते है’, स्वतन्त्रा सेनानियों का विश्वास और इरादा दोनों मजबूत था शायद यही वजह थी कि उन्होंने इस देश की आवाम को आंदोलन के जरिये जागरूक करना एक बेहतर तरीका समझा।

1- सेव साइलेंट वैली आंदोलन- 

इसे आजाद भारत का पहले सबसे बड़ा आंदोलन भी कहते है, यह आंदोलन केरल के वन वर्षा साइलेंट वैली को बचाने के लिए चलाया गया था। केरल के प्रभावी नेता के करुणाकरण और सांसद वीएस विजयराघव वहां एक पनबिजली परियोजना के तहत संयंत्र लगाने के पक्ष में थे। इसी जंगल को बचाने के लिए जन आंदोलन चलाया गया, जिसे ‘सेव साइलेंट वैली आंदोलन’ कहा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना को स्वीकृति नहीं दी थी।

2- चिपको आंदोलन-

70 के दशक में पूरे भारत में जंगलों की कटाई के विरोध में एक आंदोलन शुरू हुआ जिसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन इसलिए पड़ा क्योंकि लोग पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक या लिपट जाते थे और ठेकेदारों को उन्हें नही काटने देते थे. 1974 में शुरु हुये विश्व विख्यात ‘चिपको आंदोलन’  की प्रणेता गौरा देवी थी। गौरा देवी ‘चिपको वूमन’ के नाम से मशहूर हैं।

3-जेपी आंदोलन-

जेपी आंदोलन वह आंदोलन रहा, जिसने पूरे भारत की राजनीति की दिशा बदल दी। ‘जेपी आन्दोलन’ 1974 में बिहार के विद्यार्थियों द्वारा बिहार सरकार के अन्दर मौजूद भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किया गया था। बाद में इस आंदोलन का रुख केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार की तरफ मुड़ गया। इस आंदोलन की अगुवाई प्रसिद्ध गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्त्ता जयप्रकाश नारायण ने की थी जिन्हें जेपी भी कहा जाता था।

4-जंगल बचाओ आंदोलन-

जंगल बचाओ आंदोलन की शुरुआत 1980 में बिहार से हुई थी। बाद में यह आंदोलन झारखंड और उड़ीसा तक फैल गया। 1980 में सरकार ने बिहार के जंगलों को मूल्यवान सागौन के पेड़ों के जंगल में बदलने की योजना पेश की, और इसी योजना के विरुद्ध बिहार के सभी आदिवासी कबीले एकजुट हुए और उन्होंने अपने जंगलो को बचाने के लिए एक आन्दोलन चलाया। इसे ‘जंगल बचाओ आंदोलन’ का नाम दिया।

5- नर्मदा बचाओ आंदोलन-

नर्मदा नदी पर बन रहे अनेक बांधो के विरुद्ध साल 1985 से शुरू ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ शुरू किया गया था। इस आंदोलन में आदिवासियों, किसानों, पर्यावरणविदों ने बांधों के निर्माण के फैसले के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया। बाद में इस आंदोलन में कई हस्तियां जुड़ती गईं और अपना विरोध जताने के लिए भूख हड़ताल का प्रयोग भी किया।

6- जनलोकपाल बिल – एंटी करप्शन आंदोलन-

साल 2011 में ही प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनलोकपाल बिल के लिए भूख हड़ताल शुरू की जिसके समर्थन में पूरा देश एकजुट हुआ। इस आंदोलन को इतनी सफलता मिली कि यह पिछले 2 दशक का सबसे लोकप्रिय आंदोलन बना और बाद में इसी आंदोलन की बदौलत अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। हालांकि जिस सशक्त जनलोकपाल विधेयक की मांग के लिए यह आंदोलन किया गया था, वह आप भी एक सपना है।

7-निर्भया आंदोलन-

16 दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए एक गैंगरेप के बाद पूरे देश सड़कों पर उतर आया। इसे निर्भया आंदोलन का नाम दिया गया। सोशल मीडिया पर भी आंदोलन का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिला। इसके बाद पूरे देश की विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने महिला सुरक्षा को लेकर विभिन्न कदम उठाये। सरकार ने निर्भया फंड भी बनाया। महिलाओं के लिए 1090 हेल्प लाइन जारी की गई।

 

                 “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है”

 

                  देश के वे क्रांतिकारी, जिन्होंने आजादी को अपना एकमात्र लक्ष्य बनाया –

 

क्रांतिकारी भगत सिंह-

भारत के सबसे प्रभावशाली क्रान्तिकारियो की सूची में भगत सिंह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। जब कभी भी हम उन शहीदों के बारे में सोचते है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दी तब हम बड़े गर्व से भगत सिंह का नाम ले सकते है।

27 सितम्बर 1907 को एक ऐसे क्रांतिकारी का जन्म हुआ जिसने बचपन से ही अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लिया था। वह लक्ष्य था इस देश को अंग्रेज़ो की हुकूमत से आज़ाद कराना।

जेम्स.ए.स्कॉट ने लाला लाजपत राय की सेंट्रल असेंबली में पूर्व नियोजित प्लान के तहत हत्या करवा दी थी तब भगत सिंह सिर्फ 13 साल के थे। तभी से भगत सिंह जी के दिलोंदिमाग में अंग्रेज़ों के प्रति हिंसक भावना ने जन्म ले लिया था।

1929 में उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये ब्रिटिश असेंबली पर बम फेके थे और इसी वजह से उन्हें 116 दिनों की जेल भी हुई थी। भगत सिंह को महात्मा गांधी की अहिंसा पर भरोसा नही था। 23 साल की आयु ने उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दे दी गयी थी और मरते वक्त भी उन्हीने फाँसी के फंदे को चूमकर मौत का ख़ुशी से स्वागत किया था। तभी से भगत सिंह देश के युवाओ के प्रेरणास्त्रोत बने हुए है।

        ‘सीने पर मेरे जो जख्म है, सब फूलों के गुच्छे है, हमें पागल ही रेहन दो हम पागल ही अच्छे है”

 

खुदीराम बोस-

जिस उम्र में आज का युवा अपने कल को लेकर परेशान रहता है। उस उम्र में इस युवा के माथे पर डर या चिंता की एक शिकन तक न रहती थी। वह युवा कोई और नहीं बल्कि खुदीराम बोस थे।

खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 11 साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। देश उनकी इस कुर्बानी को कभी नहीं भूला पाएगा

        ” लिख रहा हूँ मैं अंजाम, जिसका आगाज कल आएगा, मेरे लहू का हर कतरा इंक़लाब लाएगा”

रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह खान-

भगत सिंह हमेशा कहा करते थे कि, ” प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते है” मशहूर हिंदी, उर्दू के शायर और लेखक’ रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं भी एक वजह थी भगत सिंह और उनके साथियों को क्रांतिकारी बनाने की उनकी कविताओं ने उन महान क्रांतिकारियों में आजादी को पाने की जो लौ जलाई उसे कोई बुझा न सका।

वहीँ उनके बिस्मिल के सबसे अच्छे साथी ‘अशफ़ाक़ुल्लाह खान’ की भी तमाम रचनाओं ने हर एक क्रानिकारी और देशवासियों के अंदर क्रान्ति की ज्वाला प्रकाशित की।

  “मेरे जज्बातों से इस तरह वाकिफ है मेरी कलम, मैं ‘इश्क़’ भी लिखना चाहूँ, तो इंक़लाब लिखा जाता है”

चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु-

“जिनके नाम में ही आजादी का अश्क़ छिपा हो भला वे गुलाम कैसे रह सकते है” गणेश शंकर विद्यार्थी ने चंद्रशेखर आजाद की पहचान भगत सिंह से कराई थी। सुखदेव, राजगुरु, भगत सिंह चंद्रशेखर के नेतृत्व में आजादी की इस जंग में आगे बढे।

 आजादी के इन मतवालों का जितना शुक्रिया अदा किया जाए,  जितना सम्मान दिया जाए उतना कम है, क्यूंकि ये वो मस्तमौला परिंदे थे जो जेल में होने के बावजूद आजाद थे।

भगत सिंह कहते थे कि “अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज और बुलंद करनी होगी।” इन सब महान क्रांतिकारियों ने सिर्फ अपनी आवाज़ को ही नहीं बल्कि अपनी रूह, जिस्म, ज़िन्दगी सबको आजादी पाने के लिए बुलंद कर लिया था, यही वजह है की आजादी के 70 वर्षों बाद भी ये महान क्रांतिकारी हमारे दिल में जिन्दा है।

 

                                                      “वंदे मातरम्”

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