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उत्तराखंड में मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों के लौट रहे अच्छे दिन

बिजली की कमी से बाधित होती सिंचाई और जटिल यातायात सुविधाओं के कारण उत्तराखंड में मोटे अनाज की खेती पर बुरा असर पड़ा है। ऐसे में गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (पन्तनगर) ने किसानों को मोटे अनाज ( #Millet ) की खेती करने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम की मदद से सीड प्रोसेसिंग प्लांट की शुरूआत की है।

सीड प्रोसेसिंग प्लांट से उत्तराखंड के किसानों में मिलने वाले लाभ के बारे में पंतनगर विश्वविद्यालय के एग्रोनॉमी विभाग के प्रमुख डॉ. डीएस पांडे बताते हैं, ” इस सीड प्लांट की मदद से उत्तराखंड के किसानों को काफी मदद मिल रही है। यह प्लांट नए तरह के मोटे अनाजों के डेवलपमेंट और किसानों को खेती के लिए अच्छी उपज वाले बीज उप्लब्ध कर पाएगा।”

केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने मोटे अनाज को लेकर यह कहा था कि हरित क्रांति से पहले देश में वर्ष 1965-66 के दौरान 36.90 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र पर मोटे अनाज की खेती की जाती थी। लेकिन लोगों की खपत पद्धति, आहार संबंधी आदतों में बदलाव , पौष्टिक धान्यों की अनुपलब्धता, कम लाभकारी मूल्य, कम मांग और सिंचित क्षेत्र को चावल एवं गेहूं आदि की खेती में परिवर्तित करने के कारण वर्ष 2016-17 तक इसका रकबा घटकर 14.72 मिलियन हैक्टेयर ही रह गया, जो 60 प्रतिशत कमी को दर्शाता है। ऐसे में उत्तराखंड में शुरू हुए बीज प्रोसेसिंस संयंत्र से घटती हुई मोटे अनाज की खेती को फिर से पुर्नजीवित करने में मदद मिलेगी।

पहाड़ों पर होती हैं मंडुआ, कोदो और झगोरा जैसे मोटे अनाजों की विशेष प्रजातियां। (फोटो – गूगल इमेज)

पहाड़ों पर औषधीय गुण वाले पौधों, अनाजों व फसलों की किस्में सदियों से उगाई जाती रही हैं। इन फसलों में मंडुआ, कोदो और झगोरा जैसे अनाजों की विशेष प्रजातियां शामिल है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अच्छी किस्मों के बीज न मिल पाने के कारण ऐसे अनाजों की खेती धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी है।

” हम विश्वविद्यालय में स्थानीय किसानों को बुलाकर अलग-अलग तरह के अनाजों की खेती करने का प्रशिक्षण देते रहते हैं। किसान भी ऐसी ट्रेनिंग में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते हैं।” डॉ. डीएस पांडे आगे बताते हैं।

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण एपीडा के मुताबिक भारत से जौ, बाजरा, रागी, सावा और राई जैसे मोटे अनाजों का निर्यात वर्ष 2016-17 के दौरान देश में 1.6 लाख मीट्रिक टन हुआ,  जिसका कुल मूल्य 395.83 करोड़ रुपए रहा।

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