Main Slide

…जब इस लड़के के एक पत्र से हुई थी भारतीय रेलवे में टॉयलेट की शुरूवात

55 साल बाद हुई थी भारतीय रेलवे में टॉयलेट की शुरूवात

भारतीय रेलवे एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क तथा एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क है, जिसके 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। यह भारत की इतनी बड़ी व्यवस्था है कि इसके लिए अलग से मंत्रालय भी है। ऐसे में आपको बताते हैं इतने बड़े नेटवर्क का एक सच। आपको बता दें कि जिस रेल को हम सब भारत का सबसे बड़ा नेटवर्क कहते हैं उसमें 55 से टॉयलेट की व्यवस्था नहीं की गई थी। इसका मतलब ये है कि भारतीय रेल 55 साल बिना सौचालय के दौड़ी।
 ऐसे बना भारती रेल में टॉयलेट-
बता दें कि भातीय रेल की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को हुई थी। वहीं, रेल से यात्रा के दौरान टॉयलेट न होने की वजह से यात्रियों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1909 में टॉयलेट बनवाने के लिए एक पत्र लिखा गया। यह पत्र 1909 में ओखिल चंद्र सेन ने लिख था। उसके लिखे पत्र के बाद टॉयलेट का प्रस्ताव आया था। यह पत्र साहिबगंज रेल डिवीजन के ऑफिस को लिखा गया था।

ओखिल चंद्र सेन द्वारा लिखा गया पत्र-

प्रिय श्रीमान,

“मैं पैसेजंर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन आया और मेरा पेट दर्द की वजह से सूज रहा था। मैं शौच के लिए वहां एकांत में गया. मैं वहां निवृत्त हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजाना शुरू कर दिया, ट्रेन छूटने वाली थी। मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ में धोती पकड़कर दौड़ा और तभी प्लेटफार्म पर गिर पड़ा। मेरी धोती खुल गई और मुझे वहां मौजूद सभी महिला-पुरुषों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ा। मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया।

यह कितनी बुरी बात है कि एक यात्री शौच के लिए गया हो और ट्रेन का गार्ड कुछ मिनट उसका इंतजार भी नहीं कर सकता। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि जनता की भलाई के लिए उस गार्ड पर भारी जुर्माना करें, नहीं तो मैं इस प्रकरण की सूचना समाचार पत्रों को दे दूंगा।

आपका विश्वसनीय सेवक

ओखिल चंद्र सेन”

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close