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नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन का उपयोग कर एशिया का पहला लिवर ट्रांसप्लांट

बेंगलुरु, 3 अगस्त (आईएएनएस)| एस्टर डीएम हेल्थकेयर ने नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन का प्रयोग करते हुए एशिया के पहले लिवर ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया है। नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे लिवर को शरीर के बाहर बॉडी टेम्परेचर पर 24 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस सर्जरी को ऑर्गेनॉक्स मेट्रा डिवाइस टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए एस्टर सीएमआई हॉस्पिटल में सफलतापूर्वक पूरा किया गया। एस्टर सीएमआई भारत और व्यापक एशियाई क्षेत्र का पहला अस्पताल बन गया है, जिसने स्टैंडर्ड क्लीनिकल प्रैक्टिस में नॉर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है। इससे डॉक्टरों को यह टेस्ट करने की इजाजत मिली कि ट्रांसप्लांट से पहले लिवर कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है, और इससे प्रक्रिया के सफल होने के अवसर को भी बल मिला है।

यह घोषणा ऐसे समय की गई, जब भारत में अंग प्रत्यारोपण की मांग और आपूर्ति में काफी असमानता देखी जा रही है, जिसका कारण मुख्य रूप से जनजागरूकता में कमी और आधारभूत ढांचे का अभाव है। इसके अलावा अंग प्रत्यारोपण में भारत की सफलता की दर पश्चिम के विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। इसका कारण है कि यहां लिवर को ट्रांसप्लांट से पहले 12 से 14 घंटे रखने के दौरान उसकी हालत बिगड़ने जैसी स्थिति हो जाती है।

इस अवसर पर एस्टर डीएम हेल्थकेयर के सीईओ डॉ. हरीश पिल्लई ने कहा, एस्टर सीएमआई हॉस्पिटल में हमारे डॉक्टरों ने यह ऑपरेशन कर महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जिससे हमें उन गंभीर चुनौतियों से मुकाबला करने में मदद मिलेगी, जो अंगों के प्रत्यारोपण के मामले में हमारे देश में मुख्य रूप से नजर आती हैं। यह अब तक नजर आ रही अनिश्चित स्थिति से एडवांस्ड लिवर ट्रांसप्लांट की दिशा में बड़ा कदम है। जैसे-जैसे हमें इस तकनीक में विशेषज्ञता प्राप्त हो रही है, हमें यह पूरी उम्मीद है कि इस टेक्नोलॉजी से भारत और एशिया के विस्तृत क्षेत्र में अंग प्रत्यारोपण की सफलता दर में बढ़ोतरी होगी।

53 वर्षीय रोगी अश्वथ लिवर रोग की अंतिम स्टेज से पीड़ित थे, इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग से लिवर ट्रांसप्लांट कराने वाले एशिया के पहले व्यक्ति बन गए हैं।

सीनियर हीपैटोबिलियरी और ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. सोनल अस्थाना ने कहा, लिवर को आमतौर पर एक छोटे से डिब्बे में बर्फ और प्रिजर्वेशन सोल्यूशन में सुरक्षित रखा जाता है, जहां उन्हें 12 से 14 घंटे तक रखा जा सकता है। कुछ मामलों में ट्रांसप्लांट के लायक न होने पर लिवर इतनी ठंड बर्दाश्त नहीं कर पाता और खराब होने लगता है। इससे लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता की दर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। नोर्मोथर्मिक मशीन आने से अंगों को सुरक्षित रखने का तरीका ही बदल गया है और इससे डॉक्टरों को ट्रांसप्लांट से पहले अंगों की कार्यप्रणाली की जांच करने की सुविधा मिलती है। देश में दूरदराज के भागों में डोनेट किए गए अंगों को ट्रांसप्लांट सेंटर तक पहुंचाया जा सकता है और सुरक्षित ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है।

नए ऑर्गेनॉक्स मेट्रा डिवाइस ने एक प्रणाली बनाई है जो रक्त को लिवर के माध्यम से पूरे शरीर में बहने की इजाजत देती है। जब डिवाइस में मौजूद अंग शरीर की नकल करता है, डॉक्टर उसमें रक्त के प्रवाह की जांच कर सकते हैं और पित्त को निकाल कर डॉक्टर यह बेहतर ढंग से बता सकते हैं कि क्या लिवर ट्रांसप्लांट मरीज के शरीर में काम करेगा।

यह टेक्नोलॉजी अब तक यूरोप और अमेरिका में ही उपलब्ध थी और यह पहली बार है जब इसका इस्तेमाल एशिया में बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई हॉस्पिटल में किया गया है।

एस्टर सीएमआइ हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट-हीपैटो-पैनक्रिएटो-बिलियरी एवं ट्रांसप्लांट सर्जरी डॉ. राजीव लोचन ने कहा, यह नई तकनीक लिवर को जीवित रखने और शरीर के बाहर उसे गर्म रखने की इजाजत देती है, जिससे लिवर की सेहत की जांच की जा सकती है। अश्वथ के मामले में अंगों को संरक्षित रखने का समय न्यूनतम रखा गया क्योंकि उनका पेट का पहले ऑपरेशन हो चुका था। इससे पुराने लिवर को निकालने के ऑपरेशन में लंबा समय लगता और बर्फ के पानी में रखे जाने से लिवर खराब हो जाता। अब तक यही तरीका लिवर ट्रांसप्लांट के ऑपरेशन में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा इस लिवर को बेहतर बनाने के लिए मशीन से ट्रीटमेंट किया जा सकता है। इस तकनीक के बारे में कई अध्ययन किए गए। मशीन परफ्यूजन की नई तकनीक उत्साहजनक है और इससे लिवर ट्रांसप्लांट का पूरा परिदृश्य न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में बदल जाएगा।

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