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शहर के सेल्‍समैन से ज्‍यादा कमा रहे गांव के चरवाहे, 25 हजार से सैलरी शुरू

नई दिल्ली। भैंसों के दूध से डेरी का कारोबार करना मुनाफे का सौदा माना जाता है। देश में दूध की बढ़ती मांग की वजह से ये धंधा हमेशा से ही चोखा रहा है। अब दिल्‍ली–एनसीआर की भैंसे दूध देने के अलावा एक नए तरह के रोजगार का अवसर भी युवाओं को मुहैया करा रही है। वो है चरवाहे का।

यहां भैंसों को चराने के लिए बेहद अच्छे वेतन पर चरवाहे रखने का सिलसिला शुरू हो चुका है। भैंस चराने वाले को करीब 50 भैंसों को रोज चराना होता है और इसकी एवज में इन्‍हें गांववालों की तरफ से 25 हजार रुपये मिलते हैं। चरवाहे के पेशे में बिहार और यूपी से आने वाले कई लोग भी जुड़ चुके हैं। बता दें कि अन्‍य प्रदेशों से जो लोग इस वक्‍त चरवाहे का काम कर रहे हैं वो मुख्य रूप से एनसीआर में फसल की बुआई और कटाई के लिए ही आते थे।

इधर एनसीआर के किसानों के पास इतना समय नहीं होता कि वे दिनभर भैंसों को चराने का काम कर सकें। किसानों ने ही इन मजदूरों को तरकीब दी कि वे उनकी भैंसों को चरा दिया करें और बदले में प्रति भैंस 500 से 700 रुपये महीना ले लिया करें। यह आइडिया चल निकला। माना जाता है कि एक चरवाहा करीब 45 से 50 भैंसों की देखरेख आसानी से कर सकता है और उसे किसी भी गांव में ये काम मिल सकता है। अब इलाके के बदौली, गुलावली, कामनगर आदि गांवों में इसी तर्ज पर भैंसो के लिए चरवाहे नियुक्त किए गए हैं।

आमतौर पर ये चरवाहे गांव में ही किसी के मकान में किराये पर परिवार सहित रहते हैं। सुबह आठ बजे से ये घर-घर जाकर भैंसों को खोल लेते हैं और उन्हें गांव के बाहर खेतों में चराने ले जाते हैं। भैंसों को चराने के बाद हिंडन या यमुना नदी में वे इन्‍हें नहलाने का काम भी करते हैं। उसके बाद शाम पांच बजे वापस भैंसों को गांव ले आते हैं। बेतहाशा बेरोजगारी के आलम में चरवाहे का यह नया पेशा युवाओं को अब खासा पसंद आने लगा हैं। अच्‍छा वेतन भी इसकी बड़ी वजह है।

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