राष्ट्रीय

नीला चांद को देख विस्मित हुए लोग

बेंगलुरु, 31 जनवरी (आईएएनएस)| नील व रक्तिम चांद का दीदार करने प्रौद्योगिकी शहर बेंगलुरु के नेहरू ताराघर पहुंचे हजारों लोग बुधवार की शाम दुर्लभ आकाशीय घटनाओं का नयनाभिराम दृश्य देख अभिभूत हुए।

आज का नीला चांद ज्यादा चमकीला और कद व आकार में बड़ा प्रतीत हो रहा था। नेहरू ताराघर के निदेशक प्रमोद जी. गलगली ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, इस चंद्रग्रहण की खासियत है कि इस बार चांद आकार में सामान्य से बड़ा दिखेगा और इस महीने की दूसरी पूर्णमासी का यह नीला चांद और रक्तिम चांद (चंद्रग्रहण के दौरान दिखने वाला चांद) सब एक साथ इत्तिफाकन होगा।

ताराघर में इस नीला चांद यानी ब्लू मून का दीदार करने के लिए हजारों बच्चे, विद्यार्थी व बुजुर्ग कतार में खड़े थे। वे सभी दूरबीन के जरिये इस अनोखे पल की एक झलक देखने को बेताब अपनी-अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

भारतीय खगोल विज्ञान संस्थान ने भी यहां लोगों को चंद्रग्रहण का नजारा दिखाने के लिए खुले में कुछ दूरबीन लगाए थे। चंद्रग्रहण शाम करीब 4.21 बजे शुरू हुआ और रात 9.38 बजे समाप्त हुआ। इस दौरान लोगों ने सुपर ब्ल्यू मून यानी वृहदाकार नीला चांद का दीदार किया। यह चांद एक घंटा से ज्यादा समय तक दृष्टिगोचर रहा।

नंगी आंखों से भी देखा जाने वाला चंद्रग्रहण का दुर्लभ दृश्य इससे पहले भारत में 1982 में दिखा था।

चंद्रग्रहण महज एक आकाशीय घटना नहीं है बल्कि खगोलशास्त्रियों के लिए पृथ्वी के एक मात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद के बारे में अध्ययन करने का एक विशेष मौका भी है।

साल जनवरी में ही दूसरी बार चांद धरती से सबसे नजदीक दिखा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह नीला चांद आकार में सामान्य से 14 फीसदी बड़ा था।

इस चांद को दीदार करने के लिए शहर के नेहरू ताराघर में खास तैयारी की गई थी, शाम 6.21 बजे से 7.37 बजे के बीच चंद्रग्रहण की इस विशेष आकाशीय घटना का लोगों ने दीदार किया।

चंद्रग्रहण के दौरान चांद लाल दिखता है जिसे ब्लड मून अर्थात रक्तिम चांद कहा जाता है।

चंद्रग्रहण एक ऐसी आकाशीय घटना है जब चांद पृथ्वी की छाया में आने के कारण ओछल हो जाता है।

इस बार चांद अपनी कक्षा में पृथ्वी के अत्यंत निकट था इसलिए इसका आकार बड़ा होने के कारण सुपर मून कहा गया। सुपर मून इस साल जनवरी में ही दो बार दिखा है। इससे पहले दिसंबर 2017 में भी सुपर मून दिखा था।

चंद्रग्रहण के दौरान हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर के कपाट बंद थे। हिंदू धर्म की मान्यता में इसे अमंगलकारी घटना मानी जाती है। इसलिए इस दौरान लोग भोजन नहीं करते हैं।

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