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सांप, बिच्छू, गिरगिट से ज्‍यादा खतरनाक है मच्‍छर, ऐसे बचें इनसे

 

लखनऊ। अंतरराष्ट्रीय विज्ञान केंद्र एवं विज्ञान संग्रहालय दिवस के अवसर पर आंचलिक विज्ञान नगरी में दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत गुरुवार को हुई। कार्यक्रम के पहले दिन मच्छर जनित बीमारियां एवं निदान के विषय पर लिखित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

यूनेस्को के तत्वाधान में शुरू हुए कार्यक्रम में छात्रों का उत्साह देखते ही बनता है। इस प्रतियोगिता में लगभग 120 विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के पहले दिन मच्छरों की ट्रैपिंग विषय पर नवाचार सत्र का आयोजन हुआ जिसमें लगभग 80 प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

इसके उपरान्त मच्छर जनित बीमारियां एवं निदान विषय पर एक लोकप्रिय व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसे सीमैप के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अखिला आनंद ने बड़े ही रोचक और सरल ढंग से प्रस्तुत किया।

सांप, बिच्छू, गिरगिट, मच्छ‍र, खतरनाक

डॉ. अखिला आनंद ने कहा कि सांप, बिच्छू, गिरगिटान से डर नहीं लगता साहेब, डर लगता है मच्छर से। यह शब्द उन लोगों के हैं जो अपने प्रियजनों को मच्छर जनित बीमारियां जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया आदि से खो चुके हैं। मच्छर जनित बीमारियों से होने वाली मृत्यु की संख्या अन्य किसी बीमारियों से कहीं ज्यादा है।

डॉ. अखिला आनंद ने कार्यशाला में बच्चों को प्रकृति में उपलब्ध घास फूस व मसालों से मच्छर भगाने की क्रीम, लोशन व तेल बनाने की विधा भी सिखाई जो मानव शरीर के लिए पूर्णतया सुरक्षित है।

साथ ही उन्होंने मच्छर भगाने वाले Coil, Vaporiser (mat , liquid), sprays, creams में प्रयोग होने वाले पदार्थों व उनके असीमित उपयोग से होने वाले घातक परिणामों की भी जानकारी दी।

मच्छर भगाने वाली क्वॉयल  में प्रयोग होने वाले रसायन-Pyrethrum, Pyrethrins, Allethrin, PBO, DEET की मात्रा अधिक हो जाने पर उनके जलने से निकलने वाले रसायन फेफड़ों में कैंसर उत्पन्न कर सकते हैं।

एक कोइल के चलने से उससे उत्पन्न होने वाले PM 75 से 100 सिगरेटों के बराबर हो सकता है और बंद कमरों में क्वॉयल का उपयोग बहुत ही घातक हो सकता है।

इस अवसर पर आयोजित नवाचार सत्र में उन्होने बताया कि प्राकृतिक सुगन्धित तेल जैसे नीम्बू घास, युकेलिप्टस, सिट्रोनेला, सौंफ , काली मिर्च, अजवैन, लवंग, नीम, कपूर के तेलों से बनाए गए प्राकृतिक क्रीम, लोशन व तेल मच्छर भगाने में सक्षम
होते हैं।

किसी भी वनस्पति तेल में 3 से 5% सिट्रोनेला आयल लेकर उसमें अन्य तेलों का 1% तक मिला कर अपने शरीर के खुले भागों पर लगाने से मच्छरों के काटने से बचा जा सकता है।

क्रीम और लेशन में DEET (N.N.-diethyl- Meta- Toluamide) नामक रसायनिक पदार्थ पाया जाता है जो बहुत कारगर साबित हुआ है और इसे लगभग सभी देशों की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसियों ने मान्यता दे रखी है। कार्यक्रमों के पहले दिन कुल मिलाकर लगभग 350 विद्यार्थीगणों ने उत्साहपूर्वक प्रतिभागिता की।

इससे पूर्व आंचलिक विज्ञान नगरी के परियोजना समायोजक डॉ. राज मेहरोत्रा ने स्कूलों से आए बच्चों का स्वागत किया व उन्हें दो-दिवसीय कार्यक्रम की जानकारी दी। कार्यक्रम का समापन शुक्रवार को किया जायेगा।

इस अवसर पर मच्छरों के उन्मूलन पर स्लोगन लेखन प्रतियोगिता एवं वैश्विक स्तर पर मच्छर जनित रोग एवं निवारण विषय पर वार्ता इत्यादि कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। प्रतियोगिता में विजेता खिलाडिय़ों का सम्मान शुक्रवार को किया जायेगा।

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