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चिकित्सकों व मरीजों के बीच संवाद जरूरी

नई दिल्ली| मरीजों के बीच असंतोष की एक बड़ी वजह है मरीजों व चिकित्सकों के बीच संवाद खत्म होना। मरीजों व चिकित्सकों के बीच संबंध बेहतर रखने में संवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

चिकित्सक-मरीज संवाद आपसी संबंध बेहतर रखने के लिए जरूरी है, ताकि सूचनाओं का खुलकर आदान-प्रदान हो और निर्णय लेते समय मरीज को विश्वास में लिया जाए। यह बात एक शोध के निष्कर्ष में कही गई है। डॉक्टर्स डे के अवसर पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने दोनों पक्षों के रिश्तों को मजबूत रखने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं।

एमसीआई के नियमानुसार, एक चिकित्सक को बीमार व्यक्ति के प्रति परवाह करने वाला होना चाहिए (एमसीआई नियम 1.1.2)। जैसे ही वह कोई केस हाथ में ले, चिकित्सक को मरीज की अनदेखी नहीं करनी चाहिए और न ही बिना पूर्व सूचना के उसे या उसके परिवार को छोड़ना चाहिए (एमसीआई नियम 2.4)। नियमानुसार, एक चिकित्सक यदि ऐसा करता है तो उसे कदाचार माना जाएगा।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “चिकित्सक व मरीज का संबंध बहुत पवित्र होता है। जैसे ही एक मरीज चिकित्सक के पास पहुंचता है, उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह देखभाल जारी रखे, भले ही उस दौरान वो यात्रा पर ही क्यों न जा रहा हो या फिर किसी अन्य वजह से मरीज को नहीं देख पा रहा हो। इसलिए, किसी केस को हाथ में लेने से पहले, यदि चिकित्सक कहीं बाहर जाने की योजना बनाता है तो उसे मरीज का पूरा ख्याल रखना होगा।”

एमसीआई के नियम 1.2.1 के अनुसार, चिकित्सक का दायित्व बनता है कि मरीज की मन से देखभाल करे और पूरी सेवा प्रदान करे। मरीज अपने चिकित्सक में जो भरोसा दिखाता है उससे वो चिकित्सक हमेशा उस मरीज को सही चिकित्सा देने के लिए बाध्य हो जाता है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया, “चिकित्सक को यह बता कर जाना चाहिए कि कितने समय तक वह बाहर रहेगा और कब वापस लौटेगा। यदि वह किसी अन्य चिकित्सक को इस बीच इलाज की जिम्मेदारी सौंपता है तो उस चिकित्सक का नाम और नंबर आदि बता कर जाना चाहिए।

इससे मरीज सही निर्णय ले पाएगा कि उस चिकित्सक से इलाज जारी रखे या नहीं। यदि मरीज की सर्जरी होनी है तो उसे पता होना चाहिए कि वह डॉक्टर सर्जरी के वक्त मौजूद रहेगा या नहीं? यह सब बता कर डॉक्टर को मरीज से रजामंदी ले लेनी चाहिए अथवा सर्जरी का निर्णय टाल देना चाहिए।”

चिकित्सक अच्छे संवाद के जरिए आने वाले संकट को पहले ही भांप सकते हैं और चिकित्सकीय मुसीबत को टाल सकते हैं। साथ ही मरीज को बेहतर सेवा प्रदान कर सकते हैं। मेडिकल शिक्षा को भी इस तरह का होना चाहिए कि महज डॉक्टरी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यवहारकुशलता और संवाद कौशल भी सिखाया जाए।

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