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.और ढाह दिया गया मुंशी प्रेमचंद का ‘घर’ 

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महोबा | कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने जिस किराए के घर में कथा संसार रचा, उसे सहेजने की बजाय प्रशासन ने लोगों के लिए ‘खतरा’ बताकर चंद समय में ढाह दिया। समाज का पहरुआ बनने का ढोंग करने वाले सिर्फ तमाशबीन बने रहे।  उत्तर प्रदेश के महोबा जिला मुख्यालय में मुंशी प्रेमचंद वर्ष 1909 की जुलाई में कानपुर से डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के पद पर तबादले के बाद यहां आए थे। तब उनकी उम्र महज 29 साल थी। मुख्यालय के छजमनपुरा मुहल्ले में ओमप्रकाश श्रीवास्तव के घर में किराए पर रहकर दिन में शिक्षा व्यवस्था की कमान संभालते थे और रात में दीये की रोशनी में उपन्यास लिखते थे।
इस किराए के घर को मुंशी जी 1914 तक अपना आशियाना बनाए रहे। उन दिनों मुंशी जी के बारे में कोई नहीं जानता था, मगर उनके यहां से चले जाने के बाद उनके लिखे उपन्यासों और कहानियों को पढ़कर लोग समझ पाए कि ‘जिन्हें हम ‘मुंशी जी’ कहते थे, वही हैं मुंशी प्रेमचंद’।’
मुंशी जी के किराए के आशियाने का कुछ हिस्सा इसी साल 16 अगस्त की भारी बारिश में गिर गया था, प्रशासन ने उसे सहेजने की जरूरत नहीं समझी। इतना ही होता, तब भी गनीमत थी, अधगिरा घर देखकर लोगों के जेहन में मुंशी जी की याद जरूर ताजा होती। लेकिन प्रशासन और नगर पालिका ने संयुक्त रूप से बुल्डोजर चलवा कर 17 दिसंबर को ढाह दिया।
जिस समय मुंशी जी के आशियाने पर बुल्डोजर चल रहा था, उस समय खुद को समाज का पहरुआ होने का ढोंग करने वाले कई लोग और जिम्मेदार अधिकारी तमाशबीन बने रहे। अब वहां मुंशी जी की याद में मलबे का बड़ा ‘ढेर’ है। मुंशी जी का आशियाना ढहाते समय वहां मौजूद रहे उपजिलाधिकारी (सदर) प्रबुद्ध सिंह से जब रविवार को पूछा गया तो उनका कहना था, “मुंशी जी का घर जर्जर हो चुका था और इसके अचानक गिरने से लोगों को ‘खतरा’ हो सकता था।”

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