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कारगिल विजय दिवस : कहानी ‘मौत की हत्या’ करने का प्रण लेने वाले कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की

3 जुलाई 1999 को मनोज पांडेय को खालुबर हिल से दुश्मनों को खदेड़ने का मिला था टास्क

कारगिल युद्ध, जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से शुरू हुआ था। इस युद्ध में 500 से अधिक वीर सपूत शहीद हो गए थे। ‘लाइव उत्तराखंड ’ उन सभी वीर सपूतों की शहादत को सलाम करता है। इन्ही वीर सपूतों में से एक थे शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय।

मनोज पांडेय ने युद्ध के मैदान में अपनी वीरता का ऐसा लोहा मनवाया कि जिसे दुश्मन भी सलाम करता है। शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय कितने वीर थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक बार कहा था कि ‘यदि मेरे फर्ज की राह में मौत भी रोड़ा बनी तो मैं कसम खाता हूं कि मैं मौत को भी मार दूंगा।’ वहीं एनडीए में दाखिले के लिए मनोज पांडेय ने इंटरव्यू के दौरान पूछे गए सवाल का ऐसा जवाब दिया कि इंटरव्यू लेने वाला भी हैरान रह गया। मनोज से सवाल पूछा गया, ‘आर्मी क्यों जॉइन करना चाहते हो?’ मनोज ने जो जवाब दिया उसे सुनकर वहां मौजूद हर शख्स चौंक गया। मनोज ने कहा था, ‘मुझे परमवीर चक्र चारिए।’ इसके बाद मनोज को एनडीए में दाखिला मिल गया।

 

मनोज पांडेय ने इस तरह कारगिल युद्ध में मनवाया अपनी बहादुरी का लोहा

मई 1999, कारगिल की जंग की तैयारी शुरू हो गई थी। इसी जंग के बाद कैप्टन मनोज पांडेय को ‘परमवीर’ मनोज पांडेय के रूप में जाना जाता था। कैप्टन मनोज के साथ थे गोरखा राईफल्स के बहादुर सिपाही। पूरे करगिल युद्ध के दौरान कैप्टन मनोज पांडेय को कई मिशनों में लगाया गया और वह हर मिशन को कामयाबी से पूरा करते चले गए। इसके साथ ही धीरे-धीरे मनोज पांडेय के कदम वीर से ‘परमवीर’ बनने की ओर बढ़ रहे थे।

3 जुलाई 1999 को मनोज पांडेय को खालुबर हिल से दुश्मनों को खदेड़ने का टास्क मिला। इस ऑपरेशन के साथ सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि इसे सिर्फ रात को अंजाम दिया जा सकता था। मनोज ने यह चुनौती स्वीकार की और अपनी पूरी पलटन के साथ आगे बढ़े। कैप्टन मनोज एक-एक कर दुश्मनों के सारे बंकर खाली करते जा रहे थे। पहले बंकर पर हुई आमने-सामने की लड़ाई में मनोज ने दो पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। दूसरे बंकर पर भी मनोज ने दो पाकिस्तानियों को खत्म कर दिया, लेकिन तीसरे बंकर की ओर बढ़ते हुए, मनोज को कंधे और पैर में 2 गोलियां लग गईं।

मनोज ने बुरी तरह घायल होने के बावजूद हार नहीं मानी और अपनी पलटन को लिए आगे बढ़ते रहे। इस वीर ने चौथे और अंतिम बंकर पर भी फतह हासिल की और तिरंगा लहरा दिया। लेकिन यहीं पर मनोज की सांसों की डोर टूट गई। गोलियां लगने से जख्मी हुए कैप्टन मनोज पांडेय शहीद हो गए। लेकिन जाते-जाते मनोज ने नेपाली भाषा में आखिरी शब्द कहे थे, ‘ना छोड़नु’, जिसका मतलब होता है किसी को भी छोड़ना नहीं। बाद में भारत सरकार ने मैदान-ए-जंग में मनोज की बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

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