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मुख्तार अंसारी के परिवार का है गौरवशाली इतिहास, लेकिन अब हो गया दागदार, कौन है मुख्तार अंसारी ?

नई दिल्ली। पूर्वांचल के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी का नाम तो सभी जानते है लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो मुख्तार के परिवार का शानदार इतिहास जानते हैं।जरायम की दुनिया मे कदम रखने से पहले मुख्तार के परिवार का शानदार इतिहास रहा है। आजादी के नायक माना जाता था अंसारी परिवार लेकिन मुख्तार अंसारी के अपराध की दुनिया मे उतरने के बाद ये तमगा तार तार हो गया। आज हम आपको मुख्तार अंसारी से जुडे कुछ ऐसे दिलचस्प किस्से बतायेगे जिसे जानकर आप भी हैरान रह जायेगे।

आजादी की लड़ाई में मुख्तार परिवार की भूमिका
मुख्तार अंसारी के दादा आजादी से पहले इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. दादा का नाम भी मुख्तार अंसारी था, जिन्होंने देश की आजादी में अहम रोल अदा किया। आजादी की जंग मे मुख्तार के परिवार की भूमिका यादगार रही है।
बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926 से 1927 तक इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वो महात्मा गांधी के बेहद करीब थे औऱ 1930 के नमक आंदोलन के दौरान लगातार गांधी जी के साथ रहे।

नाना थे महावीर चक्र विजेता, तो उपराष्ट्रपति थे चाचा
पूर्वांचल मे उस दौर मे मुख्तार के परिवार का बहुत सम्मान हुआ करता था और लोग बेहद अदब के साथ पेश आया करते थे।
मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी देश की नामचीन हस्तियों में से एक थे। शायद कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान अंसारी बाहुबली मुख्तार अंसारी के नाना थे। जिन्होंने 1947 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नौशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई।इस जंग वो शहीद हो गये थे। बाद मे उन्हे महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

अंसारी परिवार की इसी विरासत को मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी ने आगे बढ़ाया। कम्युनिस्ट नेता होने के अलावा अपनी साफ सुथरी छवि की वजह से 1971 मे वो नगर पालिका के चुनाव मे निर्विरोध चुने गये।
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं। वो उपराष्ट्रपति से पहले विदेश सेवा में थे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर भी रहे।

मुख्तार बन गये बाहुबली
परिवार के शानदार इतिहास को पीछे छोड मुख्तार अपराध की दुनिया मे आ गये। हत्या औऱ अपहरण जैसे गंभीर अपराधो मे उनका नाम आता रहा। धीरे धीरे गैंग के सरगना बन गये और पूर्वांचल मे गैंगवार की शुरुआत भी यही से हुई ।मुख्तार 2005 के दंगो के बाद से लगातार जेल मे है। दो दशक से जेल मे रहते हुये वो हर बार चुनाव लडते है और हर बार जेल से ही जीत जाते है।

1988 में मुख्तार का नाम क्राइम की दुनि‍या में पहली बार आया। मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में मुख्ता.र का नाम सामने आया। इसी दौरान त्रिभुवन सिंह के कॉन्स्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या बनारस में कर दी गई। इसमें भी मुख्तार का ही नाम सामने आया।

साल 2005 में मुख्तार अंसारी जेल में बंद थे। इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को उनके 5 साथियों सहि‍त सरेआम गोलीमार हत्या कर दी गई।हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थी। मारे गए लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थी।
इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 में रहस्यमई परिस्थितियों में मृत पाया गया था। उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वालों में से अंसारी और बजरंगी के निशानेबाजों अंगद राय और गोरा राय को पहचान लिया था।
1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा शुरू कर दिया। अपने काम को बनाए रखने के लिए मुख्तार अंसारी के गिरोह से उनका सामना हुआ। यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी शुरू हो गई।
1991 में चंदौली में मुख्तार पुलिस की पकड़ में आए, लेकिन आरोप है कि रास्ते में दो पुलिस वालों को गोली मारकर वो फरार हो गए।
इसके बाद सरकारी ठेके, शराब के ठेके, कोयला के काले कारोबार को बाहर रहकर हैंडल करना शुरू किया। 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले में उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया।

राजनीति और अपराध के काकटेल ने बनाया मुख्तार को
लगातार अपराध की दुनिया मे आगे बढ रहे मुख्तार ने अपनी जान बचाने के लिये राजनीति का दामन था। 1996 मे पहली बार वो विधायक बने मुख्तार का सपा की हो या बसपा की दोनो सरकारों मे दखल रहा। हर सरकार मे मुख्तार शामिल नजर आये। निर्दलीय विधायक के तौर पर लगातार जीत हासिल कर मुख्तार ने राजनीति मे अपने कद औऱ रसूख को बनाये रखा औऱ बडे सियासी दलो को गठंबधऩ के दौर मे मजबूर किया वो उनके इशारो पर नाचे।

योगी सरकार बनते ही पूर्वांचल के इस बाहुबली नेता की उल्टी गिनती शुरु हु। फिलहाल दो मामलो मे सजा भी हो गई। मुख्तार ने अपने बेटे अब्बास अंसारी को राजनैतिक विरासत सौपने की शुरुआत की लेकिन इंटरनेशनल खिलाडी होने के बाद भी अब्बास अंसारी पर मुख्तार की छाप पीछा नही छोड रही। अब्बास भी सुभासपा से विधायक बन गये है।

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