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पुस्तक समीक्षा : संकट, संघर्ष और संतुष्टि की यात्रा है – ‘आकाश में कोरोना घना है’

पुस्तक : आकाश में कोरोना घना है

संपादन : गौरव अवस्थी 

प्रकाशकः लिटिल बर्ड पब्लिकेशन (नई दिल्ली)     

समीक्षा : देवांशु मणि तिवारी

मूल्य : 150/-

वरिष्ठ साहित्यकार (कवि) दुष्यंत कुमार किसी तआ’रुफ़ के मोहताज नहीं है। लेकिन उनका नाम लेना जरूरी है क्योंकि इस बेहतरीन संग्रह का आधार उन्हीं की पंक्तियों से प्रेरित है।

‘ आकाश में कोरोना घना है ‘ कहानी संग्रह से गुज़रते हुए आप ऐसी कई कहानियों से रूबरू होंगे, जिन्हें पढ़ने के बाद ऐसा लगेगा कि … अरे… ये तो मेरे खुद के जीवन की कहानी है। कुछ खट्टी-मीठी कहानियां , कुछ भावुक कर देने वाले किस्से … इन सभी प्रकार के रंगों को समेटे हुए ये कहानी संग्रह आपको इस घड़ी के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगा।

कोरोना

कोरोना महामारी ने लोगों को पल पल मुसीबतों में कैसे डाला, किसी का अपना हमेशा हमेशा के लिए दूर चला गया, तो किसी के मजबूत इरादों ने 1200 किमी की दूरी साईकिल पर ही तह कर ली। ऐसी ही तमाम कहानियां (कुछ सोचने पर मजबूर कर देने वाली, तो कुछ हृदय-विदारक) संग्रह का हर एक पन्ना आपको रात में सोने नहीं देगा।

संग्रह की दूसरी कहानी की एक पंक्ति कहती है-

ई तालाबंदी में तो हम लोग
ताले में बंद हो गए हैं पापा ?

जब आप के नज़दीक रहने वाले लोग एकाएक घर छोड़ के जाने लगे और घर पहुंचने का कोई भी रास्ता ना दिख रहा हो, जब आप अकेले पड़ गए हों, न कोई हमदर्द, न कोई मददगार तब कैसे बेचैनी में भरे हुए कंठ से शब्द अपने आप बाहर आने लगते हैं। ऐसे ही कई अनुभवों से आप इस संग्रह में परिचित होंगे।

संग्रह की दसवीं कहानी की एक पंक्ति कहती है-

लॉकडाउन में कविता की इनकमिंग तो थी,
किन्तु आउटगोइंग नहीं हो पा रही थी।

लॉकडाउन केवल मजदूर, दफ्तर जाने वाले लोगों और होटल – ढाबा चलाने वाले लोगों के लिए ही परेशानी नहीं बना… कोरोना ने हम सभी को कवियों की उन बेहतरीन रचनाओं से दूर कर दिया जो हम अक्सर कवि सम्मेलनों और मुशायरों में आत्मसात कर लेते थे।

संग्रह की 14वीं कहानी की एक पंक्ति कहती है-

मैडम हमें करुणा नहीं है…
मैंने फिर पूछा – क्या नहीं है तुम्हें ?

महामारी के दौर में हम सभी टीवी देखकर और अपने इर्द-गिर्द हो रही बातों को इस कदर अपने भीतर बसा लेते हैं कि हम समाज में रहने वाले एक खास वर्ग से दूरी बनाने लगते हैं। …. (अरे… उसने टोपी पहनी है… दाढ़ी भी बड़ी है… उसके पास मत जाना नहीं तो बीमारी पकड़ लेगी) ऐसी ऐसी बे सिर – पैर की बातें हमारे दिमाग में अवैध कब्ज़ा कर लेती हैं।

कोरोना
पुस्तक के संपादक – गौरव अवस्थी जी

इन कहानियों को गहराई से पढ़ने पर उनकी समूची भाव यात्रा में खो जाने का मन करेगा। सभी कहानियों से गुजरते हुए पाठकों को इस कोरोना काल में जीवन की सच्ची आवाज भी सुनाई पड़ेगी और वे इस आवाज को इन कहानियों के माध्यम से समझ सकेंगे ।

‘ आकाश में कोरोना घना है ‘ … संग्रह में आप आपदा में डगमगाते , संभलते और फिर राह की ओर बढ़ते मजबूत इरादों से मिलेंगे, तो वहीं कुछ किस्से आपकी आंखों और गले को भर देंगे। इससे भी कहीं अधिक यह संग्रह हमें एक ऐसे जीवन काल में ले जाता है जिसमें संकट,संघर्ष और संतुष्टि एक साथ खड़े हुए दिखाई देते हैं।

 

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